वीर हनुमान बइठल बानीं मुँह फेर के । काहे नइखीं सुनत अपना सेवका के टेर कें ।।
रउरा के छोड़ हम कहीं कहाँ जाईं । केकरा से जाके आपन विपति सुनाई ।।
शरण में बानीं हम रउरा अइसन शेर के । वीर हनुमान बइठल बानीं मुँह फेर के ।।
रउरा तऽ हई कपि चारो जुग के शासक । अपना सेवकवा के विपति के नाशक ।।
दुखवा मिटाइले चारो ओर से घरे के । वीर हनुमान बइठल बानीं मुँह फेर के ।।
जेकरा पर होला राउर कृपा के कोर । झण्डा ओकर फहरेला हरदम चहु ओर ।।
केहू तुड़ पावेला ना कबहूँ ओकरा मेड़ के । वीर हनुमान बइठ्ठल बानीं मुँह फेर के ।।
'भूषण' के भारी भीड़ रउरा उतारीं । डुबऽतानी बीच में आई के उबारीं ।।
डूब जाई नाव जब आएब अबेर के । वीर हनुमान बइटल बानीं मुँह फेर के ।।