दुनिया के छोड़ी आस, रहीहऽ हरि के पास । बनीहऽ चरनिया के दास मन बावला ।।
केहू के ना बूझिहऽ छोट, मन में ना रखिहऽ खोट । लेई लीहऽ राम नाम के ओट मन बावला ।।
दुख सहिहऽ रहके चुप, याद रखिहऽ राम-रूप । पड़बऽ ना तब भवकूप मन बावला ।।
इहे हवे संत मत, तजिहऽ ना सेवा व्रत । होखे चाहे जवन दुरगत मन बावला ।।
तुलसी कबीर सूर, भइले ना हरि से दूर । नाम जपि भइले मशहूर मन बावला ।।
'भूषण' चलऽ एही राह, मन में ना रही आह । चारो ओर से मिली वाह-वाह मन बावला ।।