काहे दूर भागऽतारऽ मन हनुमान से । माया में भुलाइल बाड़ऽ कवना गुमान से ।।
धन बल रूप बाटे दुनिया में छनिक, भरम में बूझेल तू अपना के धनिक । खाली हाथ जइबऽ तू कहियो जहान से ।। काहे दूर...।।
छन-छन छुटताटे सब कुछ साथ से, बहुत कुछ छुट गइल धीरे-धीरे हाथ से । हाथ धोई देबऽ एक दिन अपना तू जान से ।। काहे दूर...।।
अबहूँ से चेत लऽ त बन जाई काम, हरदम जपत रहऽ, श्री सीताराम । राम धाम भेज दिहें अपना विमान से ।। काहे दूर...।।
'भूषण' भरोसा राखऽ, मन में तू भारी, जिनगी के दूर तोहर करीहे लाचारी । भजन में लागल रहऽ पूरा अरमान से ।। काहे दूर...।।