मानत नइखे मनवाँ हरामी हो, तनि हनुमत सुधारऽ । होत जात विषयानुगामी हो, तनिं हनुमत सुधारऽ ।।
तोहरा चरनिया से भागऽताटे दूर, वासना का रस में ई डूबल भरपूर । सहऽता अपार बदनामी हो, तनि हनुमत सुधारऽ।।
झुठे के बूझले बा मनवाँ ई साँच, माया का बोल पर रचले बा नाच । रात-दिन करता गुलामी हो, तनि हनुमत सुधारऽ।।
दाया करऽ एक बेर दरस देखावऽ, 'भूषण' का मनवा के रहिया पर लावऽ। भगति के मिलो राजधानी हो, तनी हनुमत सुधारऽ।।