हरि सुमिरन मन हरदम करऽ । चलऽना अनीति पर हरदम डरऽ ।। हरि सुमिरन...।।
केहूके डरावऽ जनि केहू से ना डरऽ । एक बेर मरिहऽ ना बेर-बेर मरऽ ।। हरि सुमिरन...।।
अंग-अंग रोम-रोम राम रस भरऽ । नाम के जहाज चढ़ऽ भव जल तरऽ ।। हरि सुमिरन...।।
ज्ञान के कुठार लेलऽ वासना से लड़ऽ । फूंक-फूंक पाँव रखऽ, आगे-आगे बढ़ऽ ।। हरि सुमिरन...।।
गुरु क चरन रज माथ पर धरड I 'भूषण' भगवान के तू रक्षक आपन बरऽ ।। हरि सुमिरन...।।