साँस में टँगाइल साँस, चरन में लागल आस, केहू ना बचइया बाटे पास रघुराई जी ।
भँवर में फॅसल नाव, चलत नइखे कवनो दावऽ, उमरऽ में होखता घटावऽ रघुराई जी ।
संगी के छूटल साथऽ, लागल नाहीं कुछ हाथ ऽ, सहत नइखे बोझ अब माथ रघुराई जी।
रहिया में भरल धूरऽ, जाये के बा अभी दूरऽ, चले नाहीं आवऽताटे लूरऽ रघुराई जी ।
घेरलस अन्हार घोरऽ, थर-थर काँपे गोरड, रहिया में कर दीं अँजोरऽ रघुराई जी ।
'भूषण' के हरीं भाड़ऽ किरपा के बहाई धारऽ, बानीं हम बहुते लाचारऽ रघुराई जी ।