ए दुलहा तनि एक बेर बोलऽ । भगिया के बंद ताला बोलके तू खोलऽ ।।
धन-धन भाग बाटे मिथिलापुर बासी के । दुलहा रूप में दर्शन भइल अलख अविनाशी के ।। अगजग डोलावेलऽ तू मण्डप में डोलऽ । ए दुलहा तनि एक बेर बोलऽ ।।
सुनिले कि वेद बाटे निकलल तोहरा साँस से । चान-सुरुज चमकेले तोहरे प्रकाश से ।। पर्दा अपना मुँह पर से अब तूहूँ खोलऽ । ए दुलहा तनि एक बेर बोलऽ ।
जनम-जनमवाँ के पुण्य बाटे जागल । तोहरा के देख दुख दूर अब भागल ।। धोलऽ । बोलऽ । खट मीठ खालऽ कुछ हाथ मुँह ए दुलहा तनि एक बेर
'भूषण' से एक बेर हँस बतियावऽ । जनम-जनमवाँ के बिगड़ल मन का मण्डपवा में हरदम ए दुलहा तनि एक बेर बनावऽ ।। डोलऽ । बोलऽ ।