धन-धन मिथिला के भाग, दुलहा बनि राघो जी अइले ।। टेक...।।
साँवली सुरतिया इनकर मोहनी मुरतिया, देखि देखि राजा जी के बदलल मतिया । मिथिला के लोग सब देखि अगरइले ।। दुलहा बनि...।।
साँवर-साँवर गोर-गोर दुलहा दू जोड़ी, चारो बहीन राजे जनक किशोरी । अजबे अँजोर सखि मंडप में भइले ।। दुलहा बनि...।।
दुलहा के देखेला रूप बदलके, देव सब आ गइले स्वर्ग से चलके । रूप सब ब्राह्मण के देव लोग अइले ।। दुलहा बनि...।।
धरिके अनूप रूप अइली देवरानी, सखिन के संग गावे गीत मृदु बानी । प्रेमवा के गाँठ में पहुना बन्हइले ।। दुलहा बनि...।।
'भूषण' के मन आज दुलहा में लागल, जनम-जनमवाँ के दुख दूर भागल । रोम-रोम रामजी का रस में सनइले ।। दुलहा बनि...।।