राम नाम में दिहीं नेह, सेवा में लगाई देह । छुटे नाही राम से स्नेह हनुमान जी ।।
दिने दिने बढ़ो चाह, भगति के मिलो राह । मिटत जाय वासना के दाह हनुमान जी ।।
जइसे जइसे दिन बीते, भवरस होखे रीते । जगत के गीत लागो तीते हनुमान जी ।।
कथा के प्रचार करी, आपन हम सुधार करी । भगति के भाव दिहीं भरी हनुमान जी ।।
छुटी जब अतिम साँस, रउरा रहऽब हमरा पास ।. पूरा करऽब 'भूषण' के आस हनुमान जी ।