मन भजन करऽ ना चित चोरे के, कोशिला किशोर के ना, पिता दशरथ जी महान, तेजले विरह में इनका प्राप्ण । बनवले देवलोक अस्थान, देहिया से नाता तोड़ के ना ।। कोशिला...।।
धन कोशिला जी माई, दिहली ब्रह्म के बोलाई । लेहली गोदिया में खेलाई, झुलवली झूला झकझोर के ।। कोशिला...।।
धन अवधवासी के भाग, सबका राम चरण अनुराग । चलले इनका पीछा लाग, घर से नाता तोर के ना ।। कोशिला...।।
'भूषण' ममता के तू त्यागऽ, हरदम राम भजन में लागऽ । मन के राम रस में पागड, विषयन से नाता तोर के ना ।। कोशिला...।।