ध्रुव प्रहलाद तरि ग्राह से उबारी गज, शबरी जटायु आ विभीषण के तरलऽ ।
अधम अजामिल के पाक कइ दिहलऽ, अमीत अधम के तू भव से उबरलऽ ।
नानक कबीर सूर तुलसी के पीर हरि, मीरा नामदेव बाल्मीकि क सुधरलऽ ।
दया के सुभाव तोहर जग में विदित प्रभु, 'भूषण' का बेरिया तू कहऽ काहे हरलऽ ।