सुरसती बनिकर हंस पर सवार होलू, बुद्धिया का जड़ता के क्षण में मिटावेलू ।
पल में दयाल होलू अपना सेवकवा प, महाकवि गुंगवो के पल मे बनावेलू ।
पारबती बनि जब शेर पर सवार होलू, शिवजी से अमर-अमर कथा तू कहवावेलू ।
सीता बनि आवेलू त राम अवतार होला, 'भूषण' दशानन के नाश करवावेलू ।