रघुनंदन हो, फेर तनि एक बेर आवऽ । जरऽतानी अगिया में आके तू बचावऽ ।। रघुनंदन हो...।।
दिन-रात तरपेले देखे ला अँखिया, रोई-रोई भींजेला आँसू से तकिया । तलफत करेजवा के शीतल बनावऽ ।। रघुनंदन हो...।।
जनम-जनमवाँ से तरपत बानी, एक घूँट पीयावऽ अपना दरस के पानी । सूखत कमल मन फेर से खिलावऽ ।। रघुनंदन हो...।।
हाल बा बेहाल नाहीं कुछुओ बुझाता, धीरे-धीरे दुनिया से छुटऽताटे नाता । छुट जाव साफ आपन हाथ तू बढ़ावऽ ।। रघुनंदन हो...।।
आउर कुछ चाहिले ना भूख तोहरा रूप के, केहू के जनावऽ जनि चल आवऽ चुपके । 'भूषण' अभागवा के भगिया जगावऽ ।। रघुनंदन हो...।।