सीताराम जपऽ ना तू मन चितलाई के । जीये लऽ अनेरे काहे दुनिया में आइके ।।
अबहूँ से जोड़लऽ तू रामजी से नेहिया । धीरे-धीरे होखऽता पुरान तोहर देहिया ।। नातऽ पछतइब पीछे अवसर गँवाई के । सीताराम जपऽ ना तू मन चितलाई के ।।
बिरथा बितावेलऽ तू दिन अरू रतिया । चेतऽ-चेतऽ-चेतऽ ना तऽ होई दुरगतिया ।। बस नाहीं चली तोहरा बाप-माई-भाई के । सीताराम जपऽ ना तू मन चितलाई के ।।
अन्न ना घोटाइ पीये पइबड ना पानी । सोच-सोच रोइबऽ तू आपन कहानी ।। कुछुओ ना करिहें डॉक्टर बैद्य आइके । सीताराम जपऽ ना तू मन चितलाई के ।।
पढ़ऽ रोज-रोज तू रामायण आ गीता । दान-पुन कर कुछ पूजऽ माता-पिता ।। तबे जइबऽ 'भूषण' दुनिया से हरषाई के । सीताराम जपऽ ना तू मन चितलाई के ।।