सुनीं हनुमान जी एतने बा अरजी । जइसे चाहीं तइसे राखीं राउर बाटे मरजी ।।
समरथ सहायक रउरा हई श्रीराम के, उनकर सँवार देनीं बिगड़ल काम के । सीताराम सुमिरिले आटो पहर जी ।। सुनी.....।।
रोम-रोम राउर बा राम जी में लागल, रउरा के देखि दुख दूर जाला भागल । भूतवा पिचास जाला अपने से टर जी ।। सुनी.......
रिद्धि-सिद्धि चाहीं नाहीं दौलत अपार, जीये खातिर दिहीं एगो छोटहन आधार । रहे खातिर देदर्दी एगो छोट-मोट घर जी ।। सुनी....।।
सुखी रहो बाल-बच्चा बने आज्ञाकारी, संकट से लड़े खातिर बल दिहीं भारी । भजन में मन लागे अइसन दिहीं वर जी ।। सुनी...।।
'भूषण' के कर दिहीं भवदुख दूर, माफ करी पहिले जे भइल बा कसूर । रामजी से जोड़ दिहीं गतर गतर जी ।। सुनी.......