सिया के चरनिया के दास, मन बनके तू रहऽ ।
माता जी जेकरा के आपन बनावेली, ओकर उलझन सब खुद सुलझावेली । विपति के कइ देली नाश, मन बन के तू रहऽ ।। सिया के...।।
लछुमन से कहली सुमित्राजी माई, सीता जी हई तोहार धरम के माई । चलिजा तू उनही के पास, मन बन के तू रह ।। सिया के...।।
राम जी के मान ल तू पिता जी आपन, सेवा में लगा द तू सब अपनापन । मिल जाई परम प्रकाश, मन बन के तू रह ।। सिया के...।।
हनुमत के सीता जी बेटा बनवली, अजऽर-अमऽर करि दया दरसवली । भेज देली राघव के पास, मन बन के तू रह ।। सिया के...।।
'भूषण' ना भूलिह तू माई के चरनियाँ, जिनगी के दूर होई सब परेसानियाँ । देख उलझन मत होइह उदास, मन बन के तू रहऽ ।। सिया के...।।