शरणऽ में राखब बाटे पूरा बिसवास । नाहीं टुकराइले जे जाला रउरा पास ।।
एक बेर सच्चा दिल से, शरण में जे आवेला, प्राणो से बढ़के रउरा, मन का उ भावेला । जीवन-रथ के थाम्ह लिले रउरा ओकर रास ।। शरण में राखब...।।
भूल-चुक देखिले ना, परखीले भाव, मानस गीता इहे राउर कहता सुभाव । आउरो लोग कहले बा खुद राउर दास ।। शरण में राखब...।।
रखनीं सुग्रीव के, मितवा बनाई के, बालि पर वार कइनी ओट में लुकाई के । शरणागत के रक्षा खातिर सहनी उपहास ।। शरण में राखब...।।
शरण में अइले रउरा संत विभीषण, लंका के राज देनी मिटल दुख दूषण । सुननी सलाह उनकर बइठाके अपना पास ।। शरण में राखब...।।
गज के पुकार पर द्वारका से अइनीं, द्रौपदी के खातिर रउरा साड़ी रूप धइनी । 'भूषण' के आउर के बा, रउरे बानीं खास ।। शरण में राखब...।।