सुनऽ मइया सुरसती, करी दऽ विमल मति, होखे राम चरण में रति, मझ्या शारदा ।
देखि दुनिया के रीति, मन में भइल भीति, केहू-से-केहू के ना बा प्रीति, मइया शारदा ।
माई-बाप के मान गइल, प्रिय ससुरार भइल, बेटा भइले बहू के गुलाम, मइया शारदा ।
बबुआ भइले पढ़के बड़का, माई-बाप से भइले फरका, कइले विदेशवा में बास, मइया शारदा ।
नशा में बा लोग रत, रोज-रोज होता गत, तबहूँ छुटत नइखे लत, मइया शारदा ।
रूपिया के पीछे पागल, लोगवा बा जात भागल, सबकुछ भइल विपरीत, मइया शारदा ।
स्वार्थ एतना हावी भइल, देशहित दूर गइल, देश में विदेसिया के राग, मझ्या शारदा ।
कहवाँ ले कहीं हम, कहतानी से बा कम, एहू से अधिक बाटे गम मइया शारदा
दुख से भरल कूप, हमरा लेखा लोग चूप, बदलल समजवा के रूप, मइया शारदा ।
'भूषण' कवि के चाह, लोग चलो नीक राह, दाया कके फेरि दऽ निगाह, मइया शारदा ।