नामवाँ रतनवाँ के खान हो, मन भटकेलऽ काहे ।
तहरा के घइले बा अटकन भटकन" । जनमवाँ से खात बाड़ऽ पटकन ।। जनम
तबहूँ ना छुटऽताटे बान हो, मन भटकेल काहे । नामवाँ रतनवाँ के खान हो मन भटकेलऽ काहे ।।
इहे तन हवे मन आखिरी दुआरी । खुली असली केंवाड़ी ।। करऽना भजन
तबही होई कल्याण हो, मन भटकेलऽ काहे । नामवाँ रतनवाँ के खान हो, मन भटकेल काहे ।।
दुखवा अभाव तोहार सब सुख 'भूषण' तोहरा अपने से जाई । पीछे-पीछे आई ।।
पाई जइबऽ भगति के खान हो, मन भटकेलऽ काहे । नामवाँ रतनवाँ के खान हो, मन भटकेलऽ काहे ।।