रघुनंदन हो चरण हुआ दऽ एक बार ।। टेक...।।
जनम-जनमवाँ के तपन मिटा दऽ रघुनंदन हो, नर तन कर दऽ सुधार रघुनंदन हो.........
लाख चौरासी के चक्कर मिटा दऽ रघुनंदन हो, करम के फल क दऽ क्षार, रघुनंदन हो........
अकल अरूप तजि नाम रूप धारऽ रघुनंदन हो, ललित लीला करऽ तइयार, रघुनंदन हो.........
आई के आतंकऽ के करी दऽ ना अंत रघुनंदन हो, धरती के उतारि द ना भार, रघुनंदन हो.......।
धरती पर होखऽताटे धरम के हानि रघुनंदन हो, होख उताटे नरसंहार रघुनंदन हो...!
'भूषण' के भय भारी करी दऽ ना अंत रघुनंदन हो, भगति के बहा दऽ रसधार रघुनंदन हो.........