विनती करीले मइया दसो नोह जोड़ के । शारदा दरस दिहीं रोज-रोज भोरे के ।।
मन निरमल मइया सबल दिहीं काया । बिगरल सुधार दिहीं कर दिहीं दाया ।।
असरा में बइठल बानी रउरा अगोर के । शारदा दरस दिहीं रोज-रोज भोर के ।।
अँखिया का सोझा तनी कर दीं अँजोरिया । रामजी में मन रमो आठो पहरिया ।।
घर-परिवार दिहीं देश में सुमतिया । भेद-भाव रहे नाहीं जतिया कुजतिया ।।
मिल-जुल रहे लोग वैर-भाव छोड़ के । शारदा दरस दिहीं रोज-रोज भोर के ।।
'भूषण' के फैसल बाटे भँवर में नइया । टूटल पतवार नाहीं केहू बा खेवड्या ।।
अँचरा से पोंछ दर्दी बालकवा का लोर के । शारदा दरस दिहीं रोज-रोज भोर के ।।